Aar Par Ho Jane Do …..

मैंने देखा हैं सागर में भीगे सूरज को नहाते हुए
उसी गुम्बद पर, जहा मेरा घर था ,तारो को बतियातें हुए ,
वहां हवा भी आकर बहुत इठलाती थी
दामन में अपने ,सात समुंदर की खुशबु भर लाती थी ….

वो भारत का ‘ताज ‘ था
कहतें है ,मेरे देश की संस्कृति का आगाज था ,
इस ईमारत को पता था , न हिन्दू का ना मुस्लमान का
न इल्म था ,गीता का ना कुरान का ….

उसके पास ही हम लोगो की सुबह खिलती थी
एक नन्ही सी लड़की ,हाथो में दाने लिए रोज मिलती थी ,
बड़े चेन से हम लोग खुशिया मनाते
जरा सी आहट पर, मीलो दूर उड़ जातें
फिर वही आकर बैठ जातें , उसी लाल गुम्बद पर ….

जहाँ आज सिर्फ बारूदों के निशान सने है
हर दिशा में , सिर्फ और सिर्फ श्मशान बने है ,
आज चीख रही है दीवारे ,कोई उन्हें उनका दोष बता दे
जिस आँगन ने खून पिया ,उसे अपना रोष बता दे ….

क्या इतना ही अपराध ….वो समरस हो अपनाती गयी
मिलता रहा जो राहों में ,सबको गले लगाती गयी ,
आज वही संगीने गाढ़ चुके हैं उसके दामन में
जो खेले, पले- बढे , रहे ,उसके आँगन में …..

आज वही आतंक को ‘जेहाद’ बना कर घूम रहे
भारत माता की छाती पर ‘पाक’ ध्वजा को चूम रहे ,
आज एक बार फिर , ‘कायर’, माँ को ललकार गए है
सयंम के मन के तारो को, फिर एक बार झंकार गए है ….

सयंम बहुत हुआ अर्जुन , अब गांडीव उठा लो
विश्व पटल से ,’आतंकी देश’ का नामोनिशान मिटा दो,
बस एक बार अब , बंद तोपों का मुह खुल जाने दो
जो होगा भाग्य समर्पित , आर पार हो जाने दो …..

Aakhir kab tak ?

आज फिर धमाके हुए , शहर के उस चौराहे पर ,
जहा खिखिलाती हुयी जिंदगी आज भी खड़ी थी ,
किसी बस के इन्तजार में,
और कोई आया था , कुछ खरीदने ,
अपने छोटे से संसार को खुशियों से सीचने I

वो इन्तजार में थी आज अपने इंटरव्यू के लिए ,
मन में आशा थी की आज वो नौकरी पा जायेगी ,
और जो उसकी बूढी माँ , सालो से उसको पाल रही थी ,
उसके दामन में ढेरो खुशिया भर जायेगी I

कुछ बच्चे भी खड़े थे , स्कूल के इन्तजार में ,
जिन्हें बड़े होकर इस देश का भर उठाना था ,
भारत की सभ्यता , संस्कृति को विश्व पटल तक बढ़ाना था I

कुछ ही पलो में मिटा दिया उस आवाज ने ,
उन आँखों के सपनो को , जिन्हें सालो से पाला था किसी ने ,
आज आँखों से सामने अँधेरा है ,
जो कल तक किसी का सहारा थे ,
आज सहारे की तलाश में है I

ये सपने नहीं जानते ,
किसी हिन्दू को न मुस्लमान को ,
न ये जानतें है हिंदुस्तान को , न पाकिस्तान को ,
फिर क्यों उन्हें ही चुकाना पड़ता है हर बार इस क़र्ज़ को ,
क्यों भूल जाते है वो ‘कायर’ मानवता के अपने फ़र्ज़ को ,
क्यों आतंक को हमेशा जेहाद कहा जाता है ,
क्यों धरम को इस तरह नंगा नचाया जाता है I

आखिर कब तक यू मानवता का अंत होता रहेगा ,
आखिर कब तक बूढा बाप ,बेटे के अर्थी ढोता रहेगा ,
आखिर कब तक सुहागन की चूडिया बिखरेंगी ,
आखिर कब तक बच्चों की आहें सिंसेकेंगी ,
कब तक …..
आखिर कब तक …..???

Aakhir kab tak ?

आज फिर धमाके हुए , शहर के उस चौराहे पर ,
जहा खिखिलाती हुयी जिंदगी आज भी खड़ी थी ,
किसी बस के इन्तजार में,
और कोई आया था , कुछ खरीदने ,
अपने छोटे से संसार को खुशियों से सीचने I

वो इन्तजार में थी आज अपने इंटरव्यू के लिए ,
मन में आशा थी की आज वो नौकरी पा जायेगी ,
और जो उसकी बूढी माँ , सालो से उसको पाल रही थी ,
उसके दामन में ढेरो खुशिया भर जायेगी I

कुछ बच्चे भी खड़े थे , स्कूल के इन्तजार में ,
जिन्हें बड़े होकर इस देश का भर उठाना था ,
भारत की सभ्यता , संस्कृति को विश्व पटल तक बढ़ाना था I

कुछ ही पलो में मिटा दिया उस आवाज ने ,
उन आँखों के सपनो को , जिन्हें सालो से पाला था किसी ने ,
आज आँखों से सामने अँधेरा है ,
जो कल तक किसी का सहारा थे ,
आज सहारे की तलाश में है I

ये सपने नहीं जानते ,
किसी हिन्दू को न मुस्लमान को ,
न ये जानतें है हिंदुस्तान को , न पाकिस्तान को ,
फिर क्यों उन्हें ही चुकाना पड़ता है हर बार इस क़र्ज़ को ,
क्यों भूल जाते है वो ‘कायर’ मानवता के अपने फ़र्ज़ को ,
क्यों आतंक को हमेशा जेहाद कहा जाता है ,
क्यों धरम को इस तरह नंगा नचाया जाता है I

आखिर कब तक यू मानवता का अंत होता रहेगा ,
आखिर कब तक बूढा बाप ,बेटे के अर्थी ढोता रहेगा ,
आखिर कब तक सुहागन की चूडिया बिखरेंगी ,
आखिर कब तक बच्चों की आहें सिंसेकेंगी ,
कब तक …..
आखिर कब तक …..???