प्यार – एक मजबूरी

Hello, How r u ?
I’m fine …..wat abt u ?
me doing great ..so wen u r cuming to India?
ये सवाल पूजा न जाने कब से पूछ रह थी.और हर बार जवाब में दो ही शब्द मिलतें थे – पता नहीं….
शशांक और पूजा दोनों चेटिंग के जरिये ही मिले थे.दोनों एक ही शहर से थे,लेकिन एक दूसरे को जानतें न थे.शशांक एक बड़ी कंपनी में नौकरी करता था और पूजा अभी अपनी एमबीए की पदाई कर रही थी.आजकल की व्यस्त दुनिया में जहा कंप्यूटर ने रिस्तो को जोड़ने का काम भी किया है वही दूसरी और दूरिया भी बढ़ा दी है.लेकिन इन दोनों के लिए तो तकनीक ने जैसे एक दूसरे के दिल को बांध दिया था.पूजा को शशांक का बेसब्री से इन्तजार था.जिस से वो इतना बातें करती थी,केमरे में जिसे देखे बिना उसे नींद नहीं आती थी.उसको छूने का भी तो मन करता है …शशांक विदेश में था लेकिन समय का अंतर दोनों के बीच बढ़ते प्यार में कोई अवरोध नहीं डाल पा रहा था.पूजा और शशांक दोनों रोज घंटो बातें करते,हालाँकि दोनों एक-दो बार ही मिले थे,जब शशांक भारत आया था,लेकिन वो मिलन सदियों के मिलन से भी बड़ा था….एक-दो मुलाकातों में ही उन्होंने साथ जीने मरने की कसमें खा ली थी,प्यार अगर सच्चा हो तो वक़्त मायने नहीं रखता.शशांक की प्यार भरी बातें जैसे पूजा के मन में अजीब सी हलचल मचा जाती थी,पूजा को आजतक किसी ने इतना प्यार नहीं किया.पूजा हर वक़्त,शशांक के ख्यालो में डूबी रहती,उसने अपने भविष्य की कई कहानिया शशांक के चारो और ही बुन रखी थी.पता नहीं क्यों उसे शशांक से इतना प्यार हो गया,और कब हुआ ये भी नहीं पता…अक्सर प्यार में वक़्त गवाही नहीं देता,कोई तिथि नहीं होती जो बताये कब प्यार हुआ,और कोई वजह नहीं होती के क्यों प्यार हुआ.पयर तो एक अविरत बहती बयार है,जो कब शुरू हो कब ख़तम,साथ में क्या लाये और क्या नहीं ,कहना बहुत कठिन है.पूजा शशांक को करीब 1 साल से जानती थी,दोनों एक दूसरे से बहुत दूर रहते थे,लेकिन आभाष तो साथ रहने का ही था,शशांक की आवाज हरदम उसके कानो में गूजती रहती.हर छोटी बड़ी बात में शशांक का जिक्र होता.और इसी तरह दोनों के बीच प्यार बढ़ता गया……वक़्त अपनी गति से गुजर रहा था,वक़्त की स्वयं कोई गति नहीं होती,हालातो के हाथ वक़्त भी मजबूर है,दुखी हालात समय को जाने से रोकते है और सुखी, उसकी गति को बढ़ा देते है….आखिर समय आ ही गया,शशांक को अब भारत आना था,पूजा की ख़ुशी जैसे आसमान छू रही थी.अपने प्रेमी से मिलने की ख़ुशी,उसके मन में हजारो अरमान थे…वो आएगा तो उस से ढेर सारी बातें करुँगी,उसकी बाहों में जैसे सारा जीवन ही निकाल दूंगी,फिर कही घूमने जायेंगे,खूब मौज मस्ती ……जो इतने महीने इस तरह से गुज़रे उनका दुःख तो कुछ ही पलो में भूल जाऊँगी,ऐसे न जाने कितने ख्यालात पूजा के मन में अठखेलिया कर रहे थे…..आज की रात काटना बहुत मुश्किल हो रहा था,इतने सारे विचार,इतनी उत्सुकता,इतना प्यार …शायद पहले कभी नहीं था,

पूजा हाथो में गुलाबो से भरा बुके लिए विसिटर गेलरी में खड़े हुए शशांक का इंतज़ार कर रही थी.पिछली बार मिली थी तो शशांक ने आ के चूम लिया था.सबके सामने ऐसा करने पर पूजा ने बहुत डांटा था शशांक को ,पर इस बार,इस बार तो जैसे……पूजा की पलके शशांक के इंतज़ार को सम्हाल नहीं पा रही थी.फिलाईट को आये हुए 15 मिनट हो चुके थे.शशांक को देख पूजा की आँखें खिल उठी,उसे लगा जैसे संसार के सबसे बड़ी ख़ुशी उसके सामने आ गयी है,उसे शंशंक में ही अपना सब कुछ नज़र आ रहा था,अपना प्यार,अपना जीवन,अपना भगवान,अपनी सारी खुशियाँ……पूजा को देख शशांक ने उसे गले लगा लिया,उसके माथे को चूमा…इतना प्यार जैसे पूजा से सहा नहीं गया,उसकी आँखें छलक आई…. उसके आंसुओ को पोछते हुए शशांक ने कहा – पागल रोती क्यों हो ? आ तो गया हूँ तुम्हारे पास …..अब तुम्हारे पास ही रहूँगा,कही नहीं जाऊंगा

दोनों एरपोर्ट से घर आ चुके थे.पूजा ने आज खाने में काफी कुछ बनाया था ,उसे पता था शशांक को खीर बहुत पसंद है….पूजा ने अपने हाथो से शशांक को खाना खिलाया,जब कुछ भी प्यार से बनाया जाये तो अमृत बनता है,फिर चाहे स्वाद कैसा भी हो,दिल तक जाता है …. ,दोनों ने ढेर सारी बातें की…आज जैसे सारी कायनात पूजा के चारो ओर थी.दिन गुजरने लगे,दोनों का प्यार बढ़ने लगा,दोनों एक साथ रहने लगे थे.अब शायद वक़्त आ गया था कि इस रिश्ते को कोई नाम दिया जाये,दोनों के घरवाले भी इस नाम के लिए राजी थे,कोई अड़चन न थी…….सब कुछ जैसे मन मुताबिक ही चल रहा था,शायद सब कुछ …..पर मन को कौन जाने

शशांक रोज रात को ऑफिस से देर से घर आता,ऑफिस दूर भी था ओर काम भी बहुत ज्यादा था,पूजा अपने कॉलेज से काफी दूर रहने लगी थी ताकि ,शशांक कि नजदीकिया ऑफिस से बढ़ जाये ओर उस से भी….पूजा ने जैसे शशांक के लिए सब कुछ छोड़ दिया था,अपने सारे दोस्त,दोस्तों के साथ बातें,ओर शायद अपनी पढाई भी ….कॉलेज अब एक ओपचारिकता ही थी.रोज शाम को शशांक का इंतज़ार करना,एक साथ खाना बनाना,फिर कुछ देर घूमना ओर फिर सारी रात शशांक कि बाहों में सो जाना.आज पूजा का जन्मदिन था,दोनों ने काफी प्लान बनाये हुए थे इस दिन के लिए,एक अच्छे से होटल में खाना,फिर डिस्को जाकर ढेर सारी मस्ती,शशांक के साथ रह कर पूजा भी आजकल थोडा बहुत पीने लगी थी.शराब और प्यार का नशा कॉकटेल हो जाता है,दोनों के जज्बात जैसे आज अपने पूरे परवान पर थे.जब दो प्रेमी मिल जाये तो लगता है कि संसार में कुछ शेष नहीं है,ये कोई छद्मता नहीं,बल्कि भावो का,विचारो का एकीकरण होता है,दोनों आज एक दूसरे कि बाहों में थे.अथाह प्यार पूजा के इनकार पर हावी था,दोनों कि शादी होने वाली थी इसलिए पूजा को प्यार के इस चरम में भी कोई आपत्ति नहीं थी.ये पल पूजा कि जिंदगी में पहली बार आ रहा था,पूजा इसके लिए तैयार तो न थी लेकिन मना भी नहीं कर पा रही थी,जिसे अपनासब कुछ दे चुकी है,अपना विश्वास,अपने विचार,अपने भाव,अपना मन ,अपना दिल,फिर तन कोई मायने नहीं रखता…..कमरे कि धीमी होती रौशनी,जैसे पूजा के मन में एक सोम्य सा उजाला पैदा कर रही थी,शशांक उसके हर अंग को तरास्ता,अपने लबो से हर अंग की बारीकियों को छूता आगे बढ़ता जा रहा था….आज जैसे भावनाए अपने असिस्तव को साकार रूप दे देना चाह रही थी,हर उस चीज़ को…जो कही न कही शशांक या पूजा के मन में थी,जन्मदिन का ये तोहफा पूजा ने आज शशांक को दे दिया…पूजा को चुमते हुए शशांक उठ बैठा
थोड़ी देर तो बैठो कहा जा रहे हो – पूजा की आँखों में जैसे प्यार तैर रहा था
एक अर्जेंट कॉल है पूजा अमेरिका से,लेना जरुरी है,यही हूँ तुम्हारे पास,कही नहीं जा रहा ..पूजा के बालो में अपनी उंगलिया घुमाते हुए शशांक ने कहा
चलो giv me 30 min,i will come bk …..कहते हुए शशांक ने पूजा के गाल पर चूम लिया,पूजा जैसे शशांक के ख्यालो में डूब गयी,कब आँख लगी पता ही नहीं चला,और ये भी पता नहीं चला की कुछ पाया या कुछ खोया…शायद कुछ चीज़े इंसान अपने दिमाग से नहीं सोच पाता,न ही दिल से …शायद भविष्य ही है जो समझ लेता है और वक़्त आने पर उसे समझाता है

अब ये रोज की बात होने लगी थी,शादी होने के बंधन ने जैसे समाज,परिवार के बन्धनों से मुक्त कर दिया था….

honey,उठो,देखो चाय बन गयी है,पूजा की देर से उठने की आदत कम से कम एक फायदा उसे दिला ही देती थी….बेड टी ….!!! शशांक के सपनो में डूबी आँखें सूरज की किरणों को देखने को तैयार न थी.
शंकु,ये परदे क्यों हटा देते हो सुबह सुबह …..ये ही नाम शशांक के लिए पूजा के मुहं से निकलता था ,पूजा के लिए वो शंकु था और दोस्तों के लिए शेंकी
सुबह ? 10 बज चुके है …मैं बाथरूम में जा रहा हूँ नहाने …जल्दी उठो,कुछ खाने को बना दो बहुत भूख लग रही है,तुम्हे तो पाता है कैसा खाना मिलता है ऑफिस में ….शशांक जल्दबाजी में जातें हुए बोला
पूजा का मन उठने को कतई तैयार नहीं था,तभी शशांक का फोन बज उठा,स्क्रीन पर किसी राहुल का नाम था
sugars,देखो न किसका फोन है – बाथरूम से शशांक की आवाज आई
पूजा ने फोन उठाया,दूसरी और किसी लड़की की आवाज थी – hey shenky,I m waiting for u ……कहा हो जानेमन,पूजा के सामने जैसे अँधेरा सा छा गया,गले में जैसे आवाज ही अटक गयी थी.कुछ समझ नहीं आ रहा था.पूजा ने फोन काट दिया …
किसका फोन था – शशांक ने फिर पूछा
पता नहीं,अपने आप कट गया -पूजा नहीं चाहती थी की शशांक को कुछ पता चले,लेकिन उसका मन …उसका दिल ये मान ने को तैयार न था…पर दिमाग का क्या करे,वो सोचना भी बंद नहीं करता.
आज पूजा कॉलेज भी नहीं गयी,न कुछ खाया…बस एक ही सवाल,कौन थी वो ? अगर दोस्त थी तो नंबर राहुल के नाम से क्यों सेव था ? क्या कोई और भी है शशांक की जिंदगी में ? ऐसे न जाने कितने ही सवाल पूजा को परेशां कर रहे थे.किस से पूछे ? शशांक से ? नहीं उस से क्यों पूछेगी? वो तो गलत ही बताएगा …दोस्तों को तो वो कब का छोड़ चुकी है …..किस को बताये ? पूजा कुछ समझ नहीं पा रही थी,मन नहीं लग रहा था कंप्यूटर के सामने जा बैठी.शायद इस समय ये ही मन को थोडा सहारा दे,….अपने सारे मेल देखने लगी,कितने दिन हुए,सबसे तो नाता सा टूट गया था.लेकिन शायद कोई तो था जो पूजा के सामने सच लाना चाहता था…..गलती से शशांक अपना मेल खुला छोड़ गया था.शायद एक रास्ता भगवन ने पूजा के लिए खोल दिया था ….हर एक मेल को चैक करती,हर एक मेल को पड़ती …..एक एक मेल खुलता जा रहा था और पूजा की आँखों से जैसे बढ़ता पानी सब कुछ बाहे ले जा रहा था,हर एक बाँध को तोड़ता,जैसे आज उसका प्यार पानी बन चुका था और उसके दिल से बाहर आ जाना चाहता था …….नहीं,कोई ऐसे कैसे कर सकता है?इतना धोखा?इतनी बनाबट?इतना फरेब? नहीं ………..एक इंसान नहीं कर सकता,दिल इतना गन्दा नहीं हो सकता,….पूजा की तो जैसे सांस ही उखड गयी थी,कोई तो न था उसके पास,न दोस्त,न घरवाले….किसको बताये? उसने भी तो किसी को बिना बताये ये सब कुछ किया था ……

आज शशांक रोज की तरह फिर देर से आया,पूजा के मन में जैसे हजारो सवाल थे,पर कैसे पूछे,कहा से शुरू करे ……जिस चेहरे में कल तक भगवान था ,आज अचानक,वही इंसान ….उसकी आँखें,उसके दिल से बगावत कर रही थी
शशांक,कौन है ये शिल्पा? – पूजा की आँखों में जैसे सैलाब सा उमड़ रहा था
कौन शिल्पा ? – शशांक ने अनजान बनते हुए कहा
देखो शशांक,सच बताओ…..मुझे बुरा नहीं लगेगा,मैं समझ सकती हूँ ….बता दो …मेरा प्यार कम न होगा – पूजा के दिल में शशांक के लिए प्यार अभी भी बरक़रार था
कोई नहीं है रे, ऑफिस में है एक …दोस्त है मेरी – शशांक ने पूजा को अपनी बाहों में लेते हुए कहा
दोस्त? दोस्त के साथ तुम डिस्को जातें हो,दोस्त को तुम I Love You बोलतें हो,दोस्त के साथ रातें बिताते हो ……पूजा के अन्दर जैसे ज्वालामुखी फूट रहे थे
पूजा अब तुम हद पार कर रही हो,तुम अभी ही वही,गाँव की लड़की की तरह बात करती हो ….रहोगी तो वही न,तुम लोगो को कितना भी पैसा मिल जाये लेकिन औकात ………शशांक भी जैसे अपनी गलती को अपने गुस्से में दबा देना चाहता था
औकात ? जानती हूँ मेरी औकात ….और अब तो वो भी नहीं रही,तुम जैसे दोगले इंसान के साथ रहकर – पूजा को जैसे अपनी गलती को आभाश हो रहा था.

बिना कुछ बोले पूजा अन्दर कमरे में चली गयी,आज खाने में कुछ नहीं बना,धीरे धीरे सारी बातें सामने आने लगी,वो रोज आकर शशांक का कहना की भूख नहीं है ऑफिस में कुछ खा लिया था,वो वीकेंड को भी ऑफिस जाना,रात को ऑफिस कॉल…सब कुछ जैसे पाने मायने बदल रहा था …..हाथ में शराब का गिलास लिए,येही सोच रही थी ,क्या करे,किसको कहे,घरवालो को बताये? उनसे लड़कर ही तो उसने अपनी बात मनवाई थी.दोस्तों को? जिन्हें वो कबका छोड़ बैठी है..और अपनी उस सहेली को जिसने पहले ही बताया था की शशांक का पहले भी किसी के साथ ………….

अभी तक नाराज हो? शशांक ने कमरे का दरवाज़ा खोला और उसके पास आकर बैठ गया
नहीं,कुछ नहीं हुआ ..i m ok – कहते हुए पूजा की नज़रे शराब से भरे गिलास की तरफ गयी,एक ही घूँट में सारा गिलास जैसे जिस्म के अन्दर उतर गया और जैसे शायद सारा दर्द भी
शशांक ने पूजा के गले में अपने बाहों को डालते हुए कहा –i m sorry,पापा का फोन आया था,कह रहे थे शादी के कार्ड छप चुके है
पूजा को जैसे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था ,शशांक का स्पर्श जैसे आज उसे चुभ रहा था,जैसे किसी झूठन आज उसके सामने थी ,पर उसे तो अब ये ही सहना था ….इस रास्ते.पर वो इतना चल आई थी,अब पीछे जाना मुश्किल था ..हाँ शायद अब मंजिल कुछ न थी ….पर चलना मजबूरी थी …हाँ, शायद मजबूरी ही

प्यार – एक इम्तिहान

तुम मुझे प्यार नहीं करते,तुम्हे मेरी कोई फिकर नहीं,तुम सिर्फ अपने बारे में सोचते हो,अपने घर वालो के बारें में, मेरे लिए तो तुम्हारे पास वक़्त ही नहीं है – प्रीति की आँखों में अजीब से भाव थे,जो इतनी उदासी,इतनी निराशा,इतना बेगानापन.ऐसा अजय ने आखिर क्या किया था ?वो तो सिर्फ चाहता था की अमेरिका जाकर कुछ पैसे कमा ले और फिर बापस आकर पूरी जिंदगी प्यार से बिताये और फिर 6 महीने की ही तो बात थी,इतना समय तो बस पलो में बीत जाता .अजय कभी हाथ में पकडे हुए ऑफर लैटर की तरफ देखता कभी प्रीति की उदास आँखों में.आखिर पैसा भी तो जिन्दगी के लिए जरुरी है.पैसे से इस दुनिया में सब कुछ पाया जा सकता है .और फिर इस तंगहाल जिंदगी को वो कब तक जियेगा.उसे हर चीज़ के लिए सोचना पड़ता है,वही घर से निकल कर लोकल बस का सफ़र,फिर २ किलोमीटर पैदल चलना.हर जगह पैसे की कमी खलती है.अछ्छे होटल में जाने से पहले 10 बार सोचना पड़ता है.वीकेंड आते ही जैसे खामोसी सी छा जाती है.घर पैसे भिझ्वाने के बाद कुछ भी तो नहीं बचता,और घर भिझ्बाना भी तो जरुरी है ,छोटी बहन कि शादी भी है,घर भी बन रहा है,पापा रिटायर हो चुके है …..आखिर उसकी जिंदगी अकेले की ही तो नहीं है. अजय और प्रीति दोनों अलग कोम्पनिएस में कम करते थे.दोनों साथ रहते थे,हालाँकि दोनों की शादी नहीं हुयी थी लेकिन प्यार इतना गहरा था कि एक दुसरे के साथ रहना अब बस मुश्किल सा था.बड़े सहर कि अनदेखी ऐसे रिस्तो को स्वीकार कर लेती है .रोज दोनों एक ही साथ घर से निकलते,एक खाना खाते,एक साथ घुमते,दोनों एक दुसरे का ख्याल रखते,तंगहाल नहीं थी जिंदगी पर फिर भी,मनुष्य कि आगे बदने कि प्रवर्ती उसे हमेशा से कुछ श्रेष्ठ करने के लिए उकसाती रही है.बेहतर जिंदगी कि चाहत इंसान कि सबसे बड़ी शक्ति भी है और सबसे बड़ी कमजोरी भी.
नहीं प्रीति ऐसा नहीं है…जरा सोचो,इतनी बड़ी कंपनी है,कुछ वक़्त उसमें कम करूँगा तो अच्छा अनुभव हो जायेगा,फिर विदेश जाकर कुछ पैसे भी तो बचा लूँगा और हो सका तो तुम्हे भी वह बुला लूँगा और नहीं भी हो पाया तो आ तो रहा ही हूँ ना 6 महीने में.दुबारा बापस आकर एक ख़ुशी जिंदगी शुरू करेंगे .एक फ्लैट ले लेंगे कब तक इस किराये कि माकन में यु ही गुजर करेंगे.हमारे पास सब कुछ होगा.एक फ्लैट,कार,अच्छी नौकरी,और ढेर सारा प्यार – अजय ने प्रीति को समझाते हुए कहा
देखो तुमने पिछली बार भी नहीं जाने दिया था,तुम्हे पता है जो बंदा मेरी जगह गया था आते ही घर ले लिया है.तुम मुझे ना रोकती तो हम भी आज अपने घर में रह रहे होते. आपनी कार होती.कार में मेहँदी हसन कि गजले और तुम्हारे हाथ को अपने एक साथ से पकडे कार चलाता मैं – कहते हुए अजय ने प्रीति के गले में अपनी बाहे डाल दी
छोडो भी,तुम ना अपनी बातो से मुझे मना नहीं सकते – प्रीति कि आँखों में ढेर सारा प्यार छलक आया प्रीति के लिए ,पर वो किसी भी कीमत पर अजय को दूर नहीं जाने देना चाहती थी,प्यार का दूर जाने का एहसास बहुत कठिन है ….वही समझे जिसने ये सहा है
प्रीति सोचो,इतना पैसा,इतनी खुशिया ..सोचो तो ज़रा – अजय को लगा प्रीति मन जाएगी
पैसा? क्या पैसा ही सब कुछ है – प्रीति के चेहरे पर आक्रोश था
पैसा सब कुछ नहीं,पर बहुत कुछ है – अजय ने समझाते हुए कहा
जानती हूँ,पर तुमसे दूर नहीं रह पाऊँगी, मर जाउंगी – कहते हुए प्रीति ने अपना सर अजय के कंधो पर रख दिया
कब जाना है ? प्रीति ने अपने आप को सम्हालते हुए कहा
कल,कल सुबह ही जाना पड़ेगा …..२ दिन बाद तो ज्वाइन करना है – अजय ने प्रीति के माथे को चूम लिया
दोनों ने एक साथ रोज कि तरह खाना बनाया,फिर थोड़ी देर शेर के लिए निकल गए.महानगरो कि सुबह, शाम,रत सब  एक जैसी ही होती है.भीड़ भरी सड़के,सुने सुने दिल,सामानों से लदी दुकाने पर खली होते एहसास…अज पूर्णिमा कि रात थी,चाँद आज पूरे शबाब पर था.पर नियति है के प्रकर्ति कि सारी चीज़े क्रमित होती जाती है  ,चाँद को भी कल से ढलना था….हरिवंश राय बच्चन कि कविता कि कुछ पंक्तिया है ” खोने का दुःख छुपा है,पाने के सुख के पीछे” ..कल से चाँद भी घटता जायेगा ,प्रीति के मन में भी यही भय था ,कही दूर जाकर अजय का प्यार कम ना हो जाये,आसक्ति,लगाव इंसान के सबसे बड़े शत्रु भी है और सुख के सबसे बड़े कारण भी,बढ़ता प्यार दुःख को भी बढाता है,प्रीति कि आँखें नाम थी,दोनों बोना बोले चले जा रहे थे …कुछ कदम आगे ही घर था
बिना कुछ बोले दोनों घर लौट आये
प्रीति कल सुबह जल्दी जाना है और फिर कुछ त्यारिया भी करनी है,ऐसा करो,तुम सो जाओ
बहुत बार शब्द अपने भावार्थ खो जाते है,अजय कि बात में प्रीति कि प्रति प्यार था,पर प्रीति ने उसे अपने ही ढंग से लिया,गलत वो भी ना थी.पर इस बात को आगे बढ़ाना नहीं चाहती थी इसलिए दिवार कि तरफ मुह करके लेट गयी.कहते है सच्चे प्यार में भगवान होते है,अजर प्रीति के मन कि बात भाप गया था.हाथ में पकडे बैग को जमीन पर रखकर वो प्रीति के पास जाकर बैठ गया और अपना हाथ प्रीति के सर पर रख दिया.कान में जाकर धीरे से कहा – पागल तू ही तो मेरी हिम्मत है ,तू ही ऐसे करेगी तो …..कहते हुए अजय ने प्रीति को चूम लिया.प्रीति कि उम्र कोई 22-23 साल थी.जवानी में बढती उम्र के साथ एहसास भी बढ़ते जाते है.दोनों १ साल से साथ रह रहे थे पर कुछ चीज़े अभी भी दूरिया बनाये हुए थी.पर आज जैसे बढ़ने वाली दूरी,नजदीकिया ला रही थी
तुम नहीं जानते,तुमसे कितना प्यार करती हूँ ….एक पल नहीं जी पति तुम्हारे बिना और 6 महीने – कहते हुए प्रीति कि आँखों में आंसू छलक आये
अरे मेरी प्रीति इतनी कमज़ोर? प्रीति के आंसू पोछते हुए अजय ने कहा
प्रीति और अजय आज तक इतने करीब नहीं आये थे ,हालाँकि दोनों एक दुसरे को 2 साल से जानते थे और करीब १ साल से एक साथ रह रहे थे.प्रीति कि सांसे अजय के चेहरे से टकरा रही थी.उसके सुर्ख होठो पर आंसू कि बूनसे ऐसे लग रही थी मनो सर्दी कि सुबह में गुलाब कि पंखुदियो पर उस कि बूंदे जमी हो …अजय ने अपने होठो से उन बूंदों को सोख लिया,ऐसा पहली बार नहीं हुआ था लेकिन आज कुछ अलग एहसास थे.दुःख और सुख एक साथ हो तो इंसान कुछ समझ नहीं पाता.पूरा चाँद,सर्दी कि रात,दो प्रेमी और असीमित प्यार,जैसे सारी कायनात उनके चारो और अपनी खुशिया लुटा रही थी ,दोनों आज एक दुसरे को अपना सर्वश दे देना चाहते थे,जब मन मिल जाये,विचार मिल जाये तो तन मायने नहीं रखता.दोनों एक दुसरे में समां जाना चाहते थे
आज तन भी मिल चुका था ..कुछ भी शेष नहीं बचा था,कुछ भी नहीं ,कुछ भी नहीं अजय के माथे पर पसीने कि बूंदे जैसे उसके बिछुड़ने के दर्द को धो रही थी
इतने दूर जा रहे हो,मुझसे दूर मत चले जाना -प्रीति कि बातो में मासूमियत थी अजय ने प्रीति को चूम लिया,जाने कहा देती हो ? मेरे दिल को तो पकड़ कर रख लिया है तुमने – अजय ने हँसते हुए कहा,रात का अँधेरा बढ़ता जा रहा था,प्रीति के लिए जैसे समय भागता जा रहा था.वो समय को रोकना चाहती थी .चाहती थी कि सुबह आये ही ना,अजय सो चुका था पर प्रीति कि नज़रे अभी भी अजय के चेहरे से टकरा रही थी.जाने कब आँख लग गयी पाता ही ना चला
उठो प्रीति,६ बज गए है,चलो चाय पी लो – अजय ने चाय का कप प्रीति के पास रखतें हुए बोला
तुम तैयार भी हो गए,मेरी तो आँख ही नहीं खुली – प्रीति ने चेहरे से रात को आये ख्यालो को हठाते हुए कहा
चलो चलो ,अब उठ भी जाओ,मुझे थोड़ी देर में निकलना है – अजय प्रीति को दुबारा उन ख्यालो में नहीं जाने देना चाहता था
प्रीति उठी,तैयार हुयी,अजय के लिए नास्ता बनाया,
मैं भी चलूंगी तुम्हे छोड़ने- प्रीति अजय के साथ एक एक पल को जी लेना चाहती थी
नहीं रे,मुझे यहाँ से ऑफिस जाना है,वह कुछ काम है और फिर ऑफिस कि गाड़ी से ही एअरपोर्ट निकल जाऊंगा ,वैसे ही इतना दूर है एयरपोर्ट ,तुम रहने दो – अजय प्रीति को उस बिछडाव के दर्द से बचाना चाहता था
अजय,पता नहीं क्यों मुझे ऐसा लग रहा है जैसे तुम मुझसे बहुत दूर जा रहे हो – कहते हुए प्रीति कि आँखों में आंसू छलक आये
अरे पागल,ऐसा नहीं है,तेरे पास ही तो हूँ ,तेरे अंदर – अजय ने प्रीति के सर को चूम लिया
चलो चलो ,अब में चलता हूँ ,तुम अपना ख्याल रखना और कोई भी बात हो मुझे बता देना,मैं रोज फोन करूँगा तुम्हे -कहते हुए अजय ने अपना सामान उठाया और चलने लगा
अजय,एक मिनट रुको… I love you ..कहते हुए प्रीति अजय के गले से लिपट गयी,जैसे उसे जाने नहीं देना चाहती थी,इस बार अजय भी आंसू नहीं रोक पाया,दोनों एक दुसरे कि बाहों में रोते रहे.
चलो अब मैं चलता हूँ ,कहते हुए अजय ने दरवाजा खोला.प्रीति भी पीछे पीछे दरवाजे तक आ पहुंची.अजय ने पीछे मुड़कर नहीं देखा शायद प्रीति कि भीगी आँखों को नहीं देख सकता था.बल्कि प्रीति का मन कह रहा था कि एक बार तो उसे देखे …धीरे धीरे अजय,प्रीति कि आँखों से ओझल होता जा रहा था और किसे पाता था कि उसकी जिंदगी से भी
अजय न्युयोर्क पहुँच चुका था,2 सप्ताह भी बीत चुके थे.रोज रात प्रीति से फोन पर बात होती थी.प्रीति अकेली हो चुकी थी,इतने बड़े शहर में कोई उसका अपना ना था,पर अजय कि यादें उसे सहारा देती थी और शायद जिंदगी जीने का एक मकसद भी.बढ़ता काम का भोझ अजय के समय को काम कर रहा था,अब बातें काम होती थी पर प्यार उतना ही था और शायद बढ़ भी गया था.अजय कि आँखों में सुनहरे भविष्य के सपने थे ,अपना घर,अपनी गाड़ी,अच्छी नौकरी और ढेर सारा प्यार …और क्या चाहिए था उसे .अजय बहुत मेहनत करने लगा था,ऑफिस से काफी प्रोह्त्सान मिल रहा था.सब कुछ अच्छा चल रहा था,समय जैसे अपनी रफ़्तार पकड़ चुका  था.सब कुछ अच्छा चल रहा था,बस फर्क आ रहा था बस प्रीति कि बातो में.जिन बातो में प्यार होता था,उनमें अब सिर्फ कुछ घर कि बातें,कुछ नौकरी कि और कुछ इस दुनिया की बातें ही रह गयी थी.जो दुनिया दोनों ने अपने लिए बनायीं थी जैसे धीरे धीरे खत्म सी होती जा रही थी.अपनी मसरूफियत में वो प्रीति के बदलते स्वाभाव को समझ नहीं पा रहा था.काम होती बातें दूरिया बढाती जा रही थी.एक दिन प्रीति का फोन नहीं आया.जब अक्सर अजय ऑफिस से बापस आता तो प्रीति से बातें करता था.आज २ साल में पहली बार हुआ था कि अजय ने प्रीति से बात नहीं की.आज अजय ने कुछ खाने को भी नहीं बनाया था,बस बिस्तर पर लेते लेते सोच  रहा था.कही कुछ हो तो नहीं गया उसे,इतने बड़े शहर में अकेली रहती है,कही कुछ हो गया तो अपने आप को माफ़ नहीं कर पायेगा,कही उसका मोबाइल तो चोरी नहीं हो गया,कही अपने घर तो नहीं चली गयी,पर उसे बिना बताये तो नहीं जाएगी ..जाने ऐसे कितने ख़यालात उसके दिमाग में आ रहे थे रात कब गुज़र गयी उसे पता ही नहीं चला
अजय की मसरूफियत,प्रीति को अजय की बेबफाई लग रही थी.इंसान अपने मन को नहीं समझा पता और दूसरे के मन को समझाना …..प्रीति ने अब अजय की ही कम्पनी ज्वाइन कर ली थी,अजय ही ने ये सब करवाया था,ताकि जब बापस आये तो दोनों एक साथ ऑफिस जा सके,एक साथ ही काम करे और ऐसे कितना वक़्त मिल जायेगा एक दूसरे के साथ रहने का आज फिर प्रीति का फोन नहीं आया,और ना ही उसने अजय का फोन उठाया,अजय आज कल से ज्यादा परेशान था.प्रीति का कोई दोस्त भी नहीं था जिस से पूछ ले की वो कहा है,क्या हुआ है ,आज की रात भी बिना कुछ खाए निकल रही थी….अजय ने अपनी कम्पनी के दोस्त से बात की,पता चला की प्रीति रोज ऑफिस आ रही है,फिर ऐसा क्या हुआ है,कही उसने कुछ गलत तो नहीं बोल दिया ….सब कुछ ठीक तो है ?
सब कुछ ठीक नहीं था,कुछ बहुत ज्यादा और जल्दी बदल रहा था प्रीति से बात किये बिना अजय नहीं रह पा रहा था.ना तो काम में मन लग रहा था ना खाने पीने का ही होश था.10 दिन में वो शारीर से आधा हो चुका था. नहीं,बस अब और नहीं …मैं अब यहाँ नहीं रह सकता,उस पैसे का क्या करूँगा जब प्रीति ही साथ नहीं होगी.उसे तो पता ही नहीं की प्रीति को क्या हुआ है,कही उसके घरवालो ने कही ………..नहीं,ये तो नहीं हुआ होगा ,अजय के मन में जैसे विचारो के तूफान आ रहे थे.अगले दिन अजय ने ऑफिस जाकर इस्तीफा दे दिया,किसी से कुछ नहीं बोला,सामान बंधा और अगली ही उडान से अपने देश लौट चला,प्यार में बहुत शक्ति होती है,जब वो दिल में होता है तो सब कुछ आसान  हो जाता है

२ दिन का सफ़र,प्रीति की चिंता,गिरती सेहत…जैसे अजय की परीक्षा ले रही थी. आदमी का असली इम्तिहान दुःख के समय में होता है,अजय काफी हिम्मत वाला बंदा था,पर दिल कमज़ोर हो जाये तो हिम्मत भी जवाब दे देती है .अजय भारत पहुँच चुका था.दिल में हजारो सवाल लिए ऑटो में बैठ घर की तरफ बढे जा रहा था.आज रविवार है प्रीति घर पर ही होगी,देखतें ही गले लगा लेगी,कितना रोएगी.कितना दतेगी,कितना प्यार करेगी …अजय की आँखें तरस गयी थी प्रीति को देखे हुए.आखिर अजय घर पहुंचा.घर पर ताला लगा था.२ दिन का थका वह घर के नीचे ही बैठ गया,जनता था प्रीति का कोई और दोस्त तो है नहीं .कही आसपास ही गयी होगी आ जाएगी थोड़ी देर में …..पास की दुकान पर ही चाय पी और एक सिगरेट भी जला ली जिसे वो शायद उसने २ साल पहले छोड़ दी थी,प्रीति ने अपनी कसम दी थी ..पर आज ना जाने क्यों वह अपने आप को रोक नहीं पाया,शायद कोई ईश्वरीय शक्ति थी जो उसे ऐसा करवा गयी थी
इन्तजार को ४ घंटे हो चुके थे ,शाम ढलने लगी थी,अँधेरा बढ़ रहा था ,तभी अचानक एक कार आकर रुकी,इस कार को तो अजय जानता था,उसके दोस्त राहुल की ही तो थी.तभी कार का गेट खुला,एक लड़की उतरी,अँधेरा बहुत था अजय ढंग से नहीं देख पा रहा था.पर शायद वो प्रीति ही थी ..हाँ प्रीति ही तो थी,तभी राहुल कार से उतरा और प्रीति को चूम लिया …….अजय के लिए जैसे दुनिया ही खत्म हो चुकी थी.लेकिन अपने आप को सम्हालते हुए वो आगे बढ़ा जैसे शायद वो अपनी आँखों को धोका देना चाहता था,नहीं प्रीति ऐसा नहीं कर सकती थी ….वो तो इतना प्यार करती थी उस से ….हाथ में सिगरेट सुलग रही थी और तन में दिल ……प्रीति ने अजय की तरफ देखा और फिर जलती सिगरेट को ,जैसे कोई उसकी चिता सुलगा रहा हो …….दोनों एक दूसरे से कुछ ना बोले,बोलतें भी क्या ……
अजय ने अपना बैग उठाया और चलने लगा उस राह पर,जो जिंदगी उसे दिखा रही थी ….मन में अपने अधजले प्यार को लिए,शायद अब किसी पर विश्वास नहीं कर पायेगा,अपने पर भी नहीं …..

प्यार – एक निरंतरता

कितनी चम्मच शक्कर डालू चाय में ? उसने गीले बालो को अंगुलियों से कान के पीछे करते हुए कहा
बस एक बार अपने होठो से छू लो,शक्कर की क्या जरुरत है ? मैंने हँसते हुए बोला
तुम ना,बिलकुल नहीं बदले हो ….वही हो 15 साल पहले वाले हाई स्कूल लवर …..कुछ तो नया सीख लेते – सामने वाली कुर्सी पर बैठते हुए वो बोली
सच में कुछ नहीं बदला,सब कुछ वैसा ही है 15 बरस पहले वाला,वही वादियाँ,वही पहाड़,वही जगह,वही सुबह,वही सर्दी की सुनहरी धूप,वही प्यार,वही एहसास,वही आँखें,वही मुस्कान…..कुछ नहीं बदला,कुछ भी तो नहीं I
शायद जो चीज़े शुद्द होती है,समय के साथ नहीं बदलती,तभी न जाने कितनी इमारते आज भी वैसे के वैसे खड़ी हुई हैं कितने मौसम आये और चले गए लेकिन वो आज भी समय को दोखा दे रही है …सोचते हुए मैं अपने ही ख्यालो में खो गया
हे सोना ! क्या हुआ ? किसकी यादो में खो गए हनी …कौन है ? उसने शरारती स्वर में कहा
कुछ नहीं रे,ताजमहल के बारे में सोच रहा था
ताजमहल? मैं सामने हूँ और तुम्हे ताजमहल याद आ रहा है ? वो हँसते हुए बोली
नहीं जाना, जरा सोचो …ताजमहल अभी तक वैसा ही है जैसा सदियों पहले था,वही चमक,वही रोनक,उसके समकालिक कितनी इमारते धूमिल हो चुकी है,कुछ तो कारण होगा ? मेरी आँखों में एक सवाल था,हालाँकि जवाब मुझे पता था ऐसा आज से नहीं 15 सालो से हो रहा था जिन सवालो के जवाब मुझे पता थे,फिर भी उस से पूछता था और ये भी जनता था की वो क्या बोलेगी,शायद सिलिये की सवाल तो सो शरीरो के बीच में थे,पर आत्माए तो सब जानती थी
अरे इसमें क्या है ? जो ईमारत प्यार की बुनियाद पर,विश्वास की ईटो और एहसास के गारो से बनती है अमर हो जाती है – उसकी आँखों में अजीब सी ख़ुशी थी,जैसे कोई बच्चा किसी कठिन से प्रश्न का हल करने के बाद खुश हो जाता है ,कठिन से कठिन बातो को सरल शब्दों में कह जाने की कला शायद भगवान ने उसे देकर भेजी थी,मैं अक्सर कहता था – तुम तो भगवान की बेटी हो
आर्यन तुम और तुम्हारी ये फिलोशफी कभी बंद भी करोगे ? इस बार उसकी आँखों में कुछ शिकायत सी थी उसने अपने हाथ को मेरे हाथ पर रख दिया,जैसे उसे अब इसका जवाब नहीं चाहिए था उसका स्पर्श आज भी उतना ही नया था जो आज से बरसो पहले था उसकी छुहन दिल तक जाती थी जिस्म में एक मीठी सी लहर हिलोरे लेना शुरू कर देती थी
चलो चलो ,छोडो ये सब
आज का क्या प्लान है,ये तो बताओ – मैंने बात बदलते हुए कहा
प्लान तो है तुम्हारी बाँहों में बैठकर पूरा दिन बिताने का,पर सोचती हूँ पहले जाके उस कान्हा से मिल आऊं जिसने तुम्हे मुझसे मिलाया , कहते हुए उसकी आँखों में समर्पण और भक्ति भाव झलक आया
ओह मंदिर!! मंदिर जाने की सोच रही हो जाना ? बाप रे …..its too cold.नहीं मुझे नहीं जाना इतनी दूर …..तुम तो जानती हो तुम्हारे पास आकर कही जाने का मन नहीं करता – अपने आलसीपन को चाहत से ढकने की कोसिस करते हुए मैंने कहा
चलो उठो भी,बहुत हुए ये फिल्मे डायलोग,सच में तुमसे बड़ा spiritual नास्तिक मैंने दुनिया में नहीं देखा …उसके शब्दों में प्यार भी था और थोड़ी नाराजगी भी …उसकी ये अदा मुझे हमेशा से अच्छी लगती थी,उसके बहुत सारे शब्द जो सिर्फ मेरे लिए ही इजाद हुए थे जैसे spritual horny,passive agressive,virgin सन्यासी …….और भी ना जाने क्या क्या ?
मंदिर जाने की इक्छा मेरे घोर आलसीपन पर हमेशा से भारी पड़ी है वैसे कान्हा से मेरा रिश्ता बहुत पुराना है या ये कहू के दोस्ती सी है ….उनका जनम हुआ सड़क के उस पार जेल में और मेरे सड़क के इस पार हॉस्पिटल में ….मेरी ये सोच. मुझे भगवान् ले और करीब ले आती है I भगवान के प्रति लोगो का विश्वास. भय है या भक्ति कहना बेहद कठिन हैI इस दुनिया में ऐसे बहुत कम लोग है, जो मंदिर भगवान् को उन चीजों के लिए, जो उन्हें बिना मांगे मिला,के लिए धन्यवाद देने जातें हो,वरना तो सारे मंदिर अटे पड़े है मागने वालो से ,किसी को नौकरी चाहिए,किसी को बेटा,किसी को धन ,किसी को कुछ ,किसी को कुछ ….और फिर शुरू होती है सोदेबाज़ी……ये दोगे तो ये करूँगा,वो दोगे तो वो करूँगा…वाह रे मनुज,वाह रे तेरी भक्ति …
अरे अरे सोना,हुआ क्या है तुम्हे?कितना हसीन मौसम है,कब से इन्तजार थे इस पल का ओ…चलो अब उठ भी जाओ,कब तक यहाँ यूँ ही बैठे रहोगे? हाथ पकड़कर वो उठाते हुए बोली
चलता हूँ ना,अब जाना है तो नहाना भी तो पड़ेगा
मैं उठा और थके कदमो से कमरे की ओर चलने लगा,दिसम्बर का महिना,इतनी सर्दी ओर नहाना ….सच में भक्ति आसान नहीं,लेकिन अब क्या ? उसकी किसी बात से इनकार करूँ ये भी तो मुमकिन नहीं.कमरे में लताजी का गाना बज रहा था …मोरा गोरा अंग लई ले, मोहे श्याम रंग दई दे …!!!
सुबह के १० बज चुके थे,पहाड़ो की बर्फ,धरती की धुंध के साथ मिलकर सूरज की गर्मी से लड़ने की कोशिश कर रही थी ओर शायद जीत भी रही थी.कमरे की खिड़की से झांकती हुयी बर्फ दिल को भा रही थी .असल में हमें चीजों का एहसास तब होता है जब या तो वो हमारे पास होती नहीं है या फिर बहुत कम होती है.लेकिन प्यार एक ऐसी चीज़ है जो जितनी ज्यादा हो उतनी ही कम हो जाती है,शायद इसलिए की प्यार की कोई परिभाषा नहीं होती बरसो की मोहब्बत के बाद भी कहना मुश्किल है की प्यार क्या होता है, बड़े स्वार्थी है वो लोग जो प्यार को परिभाषित करते है
वो कमरे के कोने में रखे ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ी थी,उसके खुले भीगे बाल आज भी आकर्षित कर रहे थे .
क्या कर रही हो? मैंने धीरे से पीछे जाकर उसे अपनी बाहों में भर लिया
तुम्हे पता है? वो इससे आगे कुछ बोल पाती मैंने कहा – हाँ,सब पता है ? कहना जरुरी है?
ऐसे कैसे होता है? तुब सब बिना कहे कैसे जानk लेते हो ? काला जादू जानते हो ना – वो हँसते हुए बोली
नहीं रे,तेरे अंदर ही तो हूँ मैं-कहते हुए मैंने अपने होठो से उसकी गर्दन को छू लिया,वही सवेंदना,वही एहसास,वही गर्माहट,वही सांसे,वही मदहोशी….कुछ भी तो नहीं बदला
छोडो भी,ये वक़्त है रोमांटिक होने का,पलटकर अपने दोनों हाथो को उसने मेरे गले में डाल दिया
आज भी इतना प्यार करते हो ? क्यों करते हो ? बोलो बोलो -उसने हँसते हुए कहा.शब्द मुहं से तो निकले थे पर उनका कोई सार्थक मतलब नहीं था.कुछ सवाल ऐसे होते है जिनका वास्तव में कोई जवाब नहीं होता,शायद वो सवाल नहीं होते,बस कहे सवाल के रूप में जाते है …जैसे कोई कहे “I love you”
पहले भी कहा था,आज भी वही जवाब है ….नहीं पता,बस हो गया.अब तुम इसे true love कहो, plutonic कहो, mystiq कहो ,मेरे लिए तो प्यार है बस प्यार-कहते हुए मैं पास में रखे सोफे पर जाकर बैठ गया
सोना,वक़्त देखा है? – मंदिर जाने की बेकरारी उसे मुझसे दूर खीच रही थी
हाँ, वक़्त देखा,जमाना देखा,दोस्त देखे,रिश्ते देखे…पर तेरे प्यार से खूबसूरत कुछ नहीं है,कुछ भी नहीं
मेरी बात सुनकर वो मेरी गोद में आकर बैठ गयी,उसके गिले बाल मेरे गालो से टकरा रहे थे,कुछ ऐसा एहसास था जैसे बर्फीली हवाए शरीर से टकरा कर मीठी सी लहर जिस्म में गहरे तक छोड़ जाती है
कितना प्यार करती हो मुझसे?बताओ ? – मैंने मस्ती भरे स्वर में पूछा
उसने जवाब होठो से दिया,उसके नर्म सुर्ख होठ मेरी आत्मा से बात करने लगे.किसी ने सच ही कहा है दो आत्माए होठो से ही बात करती है, जब दो लब एक हो जाये, दो सांसे एक साथ बहने लगे, दो दिल एक साथ धडकने लगे,तो दो आत्माओ का मिलन होता है,आज भी उतनी ही बेकरारी,उतने ही बेचैन एहसास,उतना ही प्यार,उतनी ही तपन…सब कुछ पहले जैसा ही नया था.मेरे हाथ जैसे उसके हर अंग को नाप लेना चाहते थे.चाँद निखरता जा रहा था,चांदनी हर तरफ फैलने लगी थी,उसने आँखें मूँद ली थी,बेचैन कुमोदनी जैसे चाँद को देख मचल उठती है चाँद में समां जाने को,गर्म साँसेमेरे अंतर्मन को छूने लगी थी,लहरें उठने लगी थी,ज्वार आज उचाईयां छू लेना चाहता था ,शायद कोशिश में अपने चाँद तक पहुचने की…….बहाब किनारे की तरफ बढ़ रहा था,सारी बाधाओ को तोड़ता हुआ,सब कुछ अपने में समेटता हुआ…सारे जज्बातों को,सारे अहसासों,सारी दूरियों को,सारे प्यार को ….सब कुछ समाता जा रहा था …सब कुछ,सब कुछ,सब कुछ
I love you कहते हुए उसने आँखें खोली…उसकी आँखे प्यार से भरी थी
I know it, कुछ नया बोलो – मैंने मुस्कुराते हुए बोला
कुछ नहीं कह सकती, तुम सब तो जानतें हो ….दोनों एक दूसरे की बाहों में बहुत देर तक लेटे रहे.एक दूसरे की आँखों में आँखे डाले….जैसे दो आत्माएं शारीर बदल चुकी थी,एक नयी सी चेतना नज़र आने लगी थी उसकी आँखों में,साथ में ढेर सारा प्यार,मुझ पर खुद से ज्यादा विश्वाश …होता भी क्यों नहीं,मेरी आत्मा जो थी उसके शारीर में ……